हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ 12 साल में मनाया जाता है और चार अलग-अलग स्थलों पर मनाया जाता है।
गंगा नदी पर हरिद्वार, शिप्रा नदी पर उज्जैन, गोदावरी नदी पर नासिक, और गंगा जमुना सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज।
कुंभ मेला आनंद का उत्सव है, समस्त दुख और परेशानियों से मुक्त होकर जीवन की मधुरता को पास रखने का एक अवसर है, या मानव जीवन का एक महोत्सव है।
देशभर के साधु और संतों की टोलियां अपने- अपने संप्रदायों और वेशभूषा के साथ यहां आते हैं और कुंभ में अपना डेरा जमाते हैं।
जिस प्रकार रक्त शिराओं में निरंतर रक्त बहने के बावजूद हमें रक्त बहने का एहसास नहीं होता वैसे ही भारतीय जीवन में भी कुंभ की चेतना निरंतर बहती रहती है इसीलिए इसे सनातन धर्म के प्राण कहा जाता है।
कुंभ मेला भारतीय सभ्यता द्वारा रची गई एक अद्भुत रचना है।
एक प्राचीन सभ्यता जहां ज्ञान को सबसे पहला स्थान दिया गया, जहां चेतना को पवित्रतम माना गया, जहां जीवन अपनी विविधता और संपूर्णता मैं पल्लवित हुआ।
कुंभ को समझने के लिए केवल शब्दों का विश्लेषण ही नहीं व्यक्ति और समाज के गहरे संबंधों को जानने की आवश्यकता है।
पूर्व से लेकर पश्चिम तक, गंगा से लेकर कावेरी तक, हिमाचल से लेकर सहयात्री तक,
ज्ञान की धाराएं, ध्यान की धाराएं, चेतना की धाराएं समा आती है इस महा अमृत कुंभ में |
कुंभ मेला उस दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है जिसने प्रकृति की प्रत्येक रचना मैं पवित्रता को देखा
यह उस दृष्टि की व्याख्या करता है जो जीवन को उस की साधारण परिभाषा से परे उसके गहरे शब्दों को जानने परखने के लिए प्रेरित करता है।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लोग चाहे वह किसी भी देश के दूर-दूर से यहां आते हैं और कुंभ का मजा लेते हैं और महानदी में सब के साथ स्नान करते हैं।
कुंभ मेले में स्नान के वक्त कभी ऐसा नहीं होता की जातीय वर्ग के आधार पर भेदभाव हो या भेदभाव किया जाए, सभी लोग एक ही जल में एक साथ स्नान करते हैं।
सभी लोग समान रुप से साधना करते हैं, और सभी लोग समान रूप से अतः भीड़ के बीच ऊर्जा का अनुभव करते हैं।
इसे समझने के लिए सभ्यताओं को लेकर हमारी समझ परिपक्व होनी चाहिए।
कुंभ मेले को हमेशा से ही पवित्रतम माना गया है और इसीलिए हर इंसान कुंभ के मेले में दर्शन करने और वहां की ऊर्जा का अनुभव करने जाता है और सब वहां पर शुद्ध और सकारात्मक महसूस करते हैं।
बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब लोग वहां पर अपने अपने परिवार वालों के साथ आते हैं और कुंभ के मजे उठाते हैं
कुंभ मेला 4 साल में एक जगह पर आता है और 12 साल में 4 बार अलग-अलग चार स्थलों पर आता है और भारत में सब लोग इस को लेकर बहुत ज्यादा उत्सुक रहते हैं|
चाहे वह स्थल उनके घर से कितना ही दूर हो लोग वहां खुशी-खुशी जाते हैं और कुंभ के ऊर्जा का लाभ उठाते हैं कई सारे साधु संत अपनी टोली लेकर बहुत दूर-दूर से कुंभ में आते हैं और उनकी ऊर्जा का अभ्यास करते हैं
यह भी पढ़े:
अरबाज़ के बेडरूम में अर्जुन और मलाइका मना रहे थे सुहागरात, सलमान ने बयां किया आंखों देखा सब कुछ…