Breaking News

चंद्रगुप्त मौर्य ने ऐसे सीखे अस्त्र और शस्त्र

धनानंद का बदला चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य दोनों को लेना था और इसीलिए वह दोनों नदियां एक समान मिलकर समुद्र का रूप धारण करते हुए दयानंद के बदले के लिए आतुर हो गई और चाणक्य को उसके पिताजी का बदला और चंद्रगुप्त मौर्य को उसकी माता का बदला झूले ना था इसीलिए वह थोड़ी ज्यादा ताकतवर और ज्यादा शक्तिशाली साबित हुई।

चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को कहा कि तुम मेरे शिष्य बनो मैं तुम्हारा गुरु बनता हूं और चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य को अपना गुरु स्वीकार करते हुए उनके पैर छुए और उन्हें नमन किया।

चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने खूब सारी तैयारियां की शाक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को बहुत सारे पाठ पढ़ाएं और चाणक्य भी ऐसा कहते कि उन्होंने भी चंद्रगुप्त मौर्य से उनकी शोशुर वीरता से बहुत कुछ सीखा है और वह दोनों ने धनानंद को हराने के लिए बहुत सारी तैयारियां की क्योंकि धनानंद को हराना इतना आसान नहीं था।

राजा धनानंद क्रूर जरूर था लेकिन एक ताकतवर राजा था और उसे हराना इतना आसान नहीं था क्योंकि उसके साथ कहीं मंत्री और कहीं शूरवीर मंत्री शामिल थे जो उनके साथ युद्ध लड़ते थे और विजय बनके ही महल वापस लौटते थे।

राजा धनानंद और उनके वीर योद्धा बड़े-बड़े सैनिकों और बड़े-बड़े राजाओं को हराकर मैदान से वापस लौटते थे इसीलिए उनसे युद्ध जीतना बहुत ज्यादा मुश्किल था वह भी अकेले।

कोई भी शासक धनानंद से टकराने का सोचता तो क्या कोशिश भी नहीं करता था क्योंकि धरण के पास सेना में 200000 की पैदल सेना 20,000 गुड सेना दो हजार और तीन हजार हाथियों की महा सेना थी।

ऐसे में धनानंद की राजगद्दी को उखाड़ फेंकने का साहस कौन कर सकता था इसके लिए कठिन तैयारी सैन्य शक्ति और जन समर्थन की बेहद आवश्यकता थी।

बालक चंद्रगुप्त मौर्य को सबसे पहले शास्त्रों की शिक्षा दी गई और इसके बाद अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी गई और अंत में चंद्रगुप्त मौर्य को राजनीति और गोपनीयता का पाठ पढ़ाता प और अंत में चंद्रगुप्त मौर्य को राजनीति और गोपनीयता का पाठ पढ़ाया।

चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की कठिन से कठिन परीक्षाएं ली और चंद्रगुप्त मौर्य हर कठिनाइयों वाली परीक्षा में सफल होता चला गया।

चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य रात दिन अस्त्र और शस्त्र का अभ्यास करते रहते वे दिन रात नींद और बाकी चीजों को भूल चुके थे उनका बस एक ही लक्ष्य था धनानंद को हराना और उनका बदला लेना।

अपनी कठिन परीक्षा की आग में जलकर चंद्रगुप्त मौर्य सोना बन रहे थे चाणक्य भी इस वीर के साथ को देखते रह जाते हैं और कभी-कभी तो उन्हें भी दंग रहता कि चंद्रगुप्त मौर्य हर चीज में कैसे सफल हो जाते हैं।

लगभग कुछ सालों में इन दोनों की तैयारियां हो चुकी थी और चंद्रगुप्त मौर्य एक साहसी वीर योद्धा बन चुके थे।

अब चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को एक नया कार्य सौंपा जो कि था प्रजा बनाना और चंद्रगुप्त मौर्य को चाणक्य ने कहा कि वापस वही जाओ जिस जंगल से तुम आए थे और वहां के लोगों को वहां के आदिवासी लोगों को इकट्ठा करो और उन को जागरुक करो और धनानंद के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करो।

जब यह काम वापस हो जाए तो यहां मेरे पास वापस आ जाना और ध्यान रहे की यह काम बहुत गुप्त तरीके से होना चाहिए।

और फिर चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने तीर कमान उठाएं और वह प्रजा बनाने करने जंगल की ओर चल पड़े।

यह भी पढ़े:
चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य की मुलाकात कैसे हुई?

About Eshika Patidar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *